Woh Khat Ke Purze Udaa Raha Tha Hawaon Ka Rukh Dikha. / वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था, हवाओं का रूख़ दिखा रहा था ।
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था,
हवाओं का रूख़ दिखा रहा था ।
कुछ और भी हो गया नुमाया,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था ।
उसी का ईमान बदल गया है,
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था ।
वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था ।
वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था ।
हवाओं का रूख़ दिखा रहा था ।
कुछ और भी हो गया नुमाया,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था ।
उसी का ईमान बदल गया है,
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था ।
वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था ।
वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था ।
- Gulzar.
- Jagjit Singh.