Ek Purana Mausam Lauta Yaad Bhari Purvayii Bhi. / एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी,

सुबह सुबह एक ख़्वाब की दस्तक पे दरवाज़ा खोला, देखा सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं । आँखों से मानूस थे सारे, चेहरे सारे सुने सुनाए, पाँव धोए हाथ धुलाए, आंगन में आसन लगवाए और तन्नूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए, पोटली में मेहमान मेरे पिछले सालों के फ़सलो का गुड़ लाए थे । आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था, हाथ लगाकर देखा तो तन्नूर अब तक बुझा नहीं था, और होठों पर मीठे गुड़ का ज़ायका अब तक चिपक रहा था । ख़्वाब था शायद, ख़्वाब ही होगा । सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली, सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख़्वाबों का ख़ून हुआ है ।

एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी ।

यादों की बौछारों से जब पलके भीगने लगती है,
कितनी सौंदी लगती है तब माज़ी की रूसवाई भी ।

दो दो शक़्लें दिखती है इस बहके से आईने में,
मेरे साथ चला आया है आपका एक सौदाई भी ।

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है,
उनकी बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी ।
  • Gulzar.
  • Jagjit Singh.