Ghazal Ka Saaz Uthao Badi Udaas Hai Raat.
ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात,
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात ।
कहें न तुमसे तो फ़िर और किससे जाके कहें,
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात ।
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गए हैं चिराग़,
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात ।
दिये रहो यूँ ही कुछ देर और हाथ में हाथ,
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात ।
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात ।
कहें न तुमसे तो फ़िर और किससे जाके कहें,
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात ।
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गए हैं चिराग़,
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात ।
दिये रहो यूँ ही कुछ देर और हाथ में हाथ,
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात ।
- Jagjit Singh.
- Firaq Gorakhpuri.