Agar Na Zohara Jabeeno Ke Darmiyaan Guzre To Phir Ye.
अगर ना ज़ोहराजबीनों के दर्मियाँ गुज़रे,
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे ।
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़,
कहीं ना ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे ।
ख़ता मुआफ़ ज़माने से बदगुमाँ होकर,
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे ।
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ के ये हुआ महसूस,
मेरे क़रीब से होकर वो नागहाँ गुज़रे ।
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे ।
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़,
कहीं ना ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे ।
ख़ता मुआफ़ ज़माने से बदगुमाँ होकर,
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे ।
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ के ये हुआ महसूस,
मेरे क़रीब से होकर वो नागहाँ गुज़रे ।
- Vinod Sehgal.
- Jigar Moradabadi.