Bangal Ki Main Sham-O-Sahar Dekh Raha Hoon.

बंगाल की मैं शाम-ओ-सहर देख रहा हूँ,
हर चंद के हूँ दूर मगर देख रहा हूँ ।

इफ़लास की मारी हुई मख़लूक सर-ए-राह,
बेगोर-ओ-क़फ़न ख़ाक बसर देख रहा हूँ ।

इन्सान के होते हुए इन्सान का ये हश्र,
देखा नहीं जाता है मगर देख रहा हूँ ।

रहमत का चमकने को है फिर नैयर-ए-ताबां,
होने को है इस शब की सहर देख रहा हूँ ।
  • Vinod Sehgal.
  • Jigar Moradabadi.