Bahut Dinon Ki Baat Hai Fizaa Ko Yaad Bhi Nahin.

बहुत दिनों की बात है,
फिज़ा को याद भी नहीं,
ये बात आज की नहीं,
बहुत दिनों की बात है ।

शबाब पर बहार थी,
फिज़ा भी खुश-गवार थी,
न जाने कयूँ मचल पड़ा,
मैं अपने घर से चल पड़ा,
किसी ने मुझको रोक कर,
बड़ी अदा से टोक कर,
कहा था लौट आईये,
मेरी क़सम ना जाईये ।

पर मुझे ख़बर ना थी,
माहौल पर नज़र ना थी,
ना जाने कयूँ मचल पड़ा,
मैं अपने घर से चल पड़ा,
मैं शहर से फिर आ गया,
ख़याल था कि पा गया,
उसे जो मुझसे दूर थी,
मगर मेरी ज़रूर थी ।

और एक हसीन शाम को,
मैं चल पड़ा सलाम को,
गली का रंग देख कर,
नयी तरंग देख कर,
मुझे बड़ी खुशी हुई,
मैं कुछ इसी खुशी में था,
किसी ने झाक कर कहा,
पराये घर से जाइये
मेरी क़सम ना आइये ।

वही हसीन शाम है,
बहार जिसका नाम है,
चला हूँ घर को छोड़ कर,
न जाने जाऊँगा किधर,
कोई नहीं जो टोक कर,
कोई नहीं जो रोक कर,
कहे कि लौट आईये,
मेरी क़सम ना जाईये ।
  • Salam Machhli Shehri.
  • Jagjit Singh.