Gham Badhe Aate Hain Qaatil Ki Nigahon Ki Tarah. / ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह,
ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह,
तुम छुपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह ।
अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते क्यूँ कर,
दिल ही दुश्मन है मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह ।
हर तरफ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त,
बस तेरी याद का साया है पनाहों की तरह ।
जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाए ‘फ़ाक़िर’,
वो भी पेश आए है इन्साफ़ के शाहों की तरह ।
तुम छुपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह ।
अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते क्यूँ कर,
दिल ही दुश्मन है मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह ।
हर तरफ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त,
बस तेरी याद का साया है पनाहों की तरह ।
जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाए ‘फ़ाक़िर’,
वो भी पेश आए है इन्साफ़ के शाहों की तरह ।
- Sudarshan Faakir.
- Jagjit Singh.