Tujhko Daryadili Ki Kasam Saqiya Mushtaqil Daur Par.

तुझको दरियादिली की क़सम साक़ीया, मुश्तक़िल दौर पर दौर चलता रहे,
रौनक-ए-मैक़दा यूँ ही बढ़ती रहे, एक गिरता रहे इक सम्भलता रहे ।

सिर्फ़ शबनम ही शान-ए-गुलिस्ताँ नहीं, शोला-ओ-गुल का भी दौर चलता रहे,
अश्क़ भी चश्म-ए-पुरनम से बहते रहे, और दिल से धुआँ भी निकलता रहे ।

तेरे कब्ज़े में है ये निज़ामी जहाँ, तू जो चाहे तो सहरा बने गुलसिताँ,
हर नज़र पर तेरी फूल खिलते रहे, हर इशारे पे मौसम बदलता रहे ।

तेरे चेहरे पे ये ज़ुल्फ़ बिख़री हुई, नींद की गोद में सुबह निख़री हुई,
और इस पर सितम ये अदायें तेरी, दिल है आख़िर कहाँ तक सम्भलता रहे ।

इसमें ख़ून-ए-तमन्ना की तासीर है, ये वफ़ा-ए-मोहब्बत की तस्वीर है,
ऐसी तस्वीर बदले ये मुमकिन नहीं, रंग चाहे ज़माना बदलता रहे ।
  • Chitra - Jagjit Singh.