Shayad Mein Zindagi Ki Sahar Leke Aa Gaya Qaatil Ko.

शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया,
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया ।

ता-उम्र ढूँढ़ता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की,
अंजाम ये के गर्द-ए-सफ़र ले के आ गया ।

नश्तर है मेरे हाथ में कांधों पे मैक़दा,
लो आज ईलाज़-ए-इश्क़ ले के आ गया ।

‘फ़ाक़िर’ सनमकदे में ना आता मैं लौटकर,
इक ज़ख़्म भर गया था इधर ले के आ गया ।
  • Jagjit Singh.
  • Sudarshan Faakir.