Kya Batayein Ki Jaan Gayi Kaise Phir Dohrayein Wo Ghadi Kaise.

उड़ के जाते हुए पँछी ने, बस इतना ही देखा, देर तक हाथ हिलाती रही, वो शाख़ फ़िज़ा में, अलविदा कहती थी या, पास बुलाती थी उसे ...................

क्या बताऐं के जान गई कैसे,
फिर से दोहराऐं वो घड़ी कैसे ।

किसने रस्ते में चाँद रखा था,
मुझको ठोकर वहाँ लगी कैसे ।

वक़्त पे पाँव कब रखा हमने,
ज़िन्दगी मुँह के बल गिरी कैसे ।

आँख तो भर गई थी पानी से,
तेरी तस्वीर जल गई कैसे ।

हम तो अब याद भी नहीं करते,
आप को हिचकी लग गई कैसे ।
  • Jagjit Singh.
  • Gulzar.