Ishq Mujhko Nahin Vehshat Hi Sahi Meri Vehshat Teri. / इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तेरी
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही ।
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही ।
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं,
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही ।
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही ।
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही ।
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं,
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही ।
- Chitra Singh.
- Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
- Complete Ghazal......
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही ।
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही ।
क़ता कीजे न त'अल्लुक़ हम से,
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही ।
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही ।
मेरे होने में है क्या रुस्वाई,
ऐ वो मजलिस नहीं ख़ल्वत ही सही ।
ऐ वो मजलिस नहीं ख़ल्वत ही सही ।
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही ।
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही ।
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो,
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही ।
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही ।
उम्र हरचंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम,
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही ।
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही ।
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं,
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही ।
कुछ तो दे ऐ फ़लक-ए-नाइंसाफ़,
आह-ओ-फ़रियाद की रुख़सत ही सही ।
आह-ओ-फ़रियाद की रुख़सत ही सही ।
हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे,
बेनियाज़ी तेरी आदत ही सही ।
यार से छेड़ा चली जाए 'असद',
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही ।
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही ।