Dhal Gaya Aaftaab Ae Saaqi La Pila De Sharaab Ae Saaqi.

ढ़ल गया आफ़ताब ऐ साक़ी,
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी ।

या सुराही लगा मेरे मुँह से,
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी ।

मयक़दा छोड़ कर कहाँ जाऊँ,
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी ।

जाम भर दे गुनाहगारों के,
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी ।

आज पीने दे और पीने दे,
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी ।
  • Jagjit Singh.
  • Sudarshan Faakir.