Tujhse Rukhsat Ki Wo Shaam-E-Ashq Afshaan Haye Haye.
तुझसे रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शाँ हाए हाए,
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामाँ हाए हाए ।
याँ कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वाँ बगल-गीरी का शरमाया सा अरमाँ हाए हाए ।
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमाँ हाए हाए ।
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामाँ हाए हाए ।
याँ कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वाँ बगल-गीरी का शरमाया सा अरमाँ हाए हाए ।
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमाँ हाए हाए ।
- Jagjit Singh.
- Josh Malihabadi.