Sham-E-Gham Kuch Us Nigah-E-Naaz Kii Baatein Karo.

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो,
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो ।

ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना,
ख़ामोशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें करो ।

कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा,
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो ।

नकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म,
सुबह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो ।
  • Vinod Sehgal.
  • Firaq Gorakhpuri.