Dard Apna Likh Na Paaye Ungaliyan Jalti Rahi.

दर्द अपना लिख ना पाए, ऊँगलियाँ जलती रही,
रस्मो के पहरे में दिल की, चिट्ठीयाँ जलती रही ।

ज़िन्दगी की महफ़िलें सजती रही हर पल मगर,
मेरे कमरे में मेरी तन्हाईयाँ जलती रही ।

बारीशों के दिन गुज़ारे गर्मीयाँ भी कट गई,
पूछ मत हमसे के कैसे सर्दीयाँ जलती रही ।

तुम तो बादल थे हमे तुमसे बड़ी उम्मीद थी,
उड़ गये बिन बरसे तुम भी बस्तीयाँ जलती रही ।
  • Jagjit Singh.
  • Madanpal.