Aye Gham-E-Dil Kya Karoon Aye Vehsat-E-Dil Kya Karoon.

शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ,
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ,
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ।

ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल,
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल,
आह लेकिन कौन समझे कौन जाने जी का हाल,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ।

रात हँस हँस कर ये कहती है के मैख़ाने में चल,
फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख़ के काशाने में चल,
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ।

जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूँ,
इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूँ,
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ।

रास्ते में रुक के दम ले लूँ मेरी आदत नहीं,
लौट कर वापस चला जाऊँ मेरी फ़ितरत नहीं,
और कोई हमनवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ।
  • Jagjit Singh.
  • Majaz Lucknawi.