Neend Ke Gaoon Mein Aaj Yaadon Ka Baazaar Hai.

नींद के गाँव में आज यादों का बाज़ार है,

खिलखिलाते हुए अपना दामन उठाते हुए,
बच्चों के पाँव की धूल का कारवाँ,
गाँव की हर गली अपने पैरों की ज़ंजीर है,
गाँव का हर मकान अपने रस्ते की दीवार है,
नींद के गाँव में आज यादों का बाज़ार है ।

एक अँगोछा लपेटे हुए वक़्त बैठा है दहलीज़ पर,
बांस के झुण्ड़ से बचके चलती रहगुज़र,
वो गली के किनारे पर बैठी वज़ू करती,
मस्जि़द की एक मिनार पर,
कब की अटकी हुई एक अज़ान,
जिसका सन्नाटा तलवार की धार है,
नींद के गाँव में आज यादों का बाज़ार है ।

मैं भी बरगद के साये में बैठी हुई,
अपनी यादों की परछाईयाँ बेच दो,
मेरे लफ्ज़ों में है उस उदासी कहानी का रस,
जिसपे चलता न था कच्चे आँगन का बस,
निमकीयों के कड़े सख़्त लड़े,
जो न जाने थे किसके लिए,
आज भी किस कदर याद है,
नींद के गाँव में आज यादों का बाज़ार है ।
  • Jagjit Singh.