Kahe Ab Ki Ae Bahar Fika Hai Har Khummar.
काहे अब की ऐ बहार, फ़िका है हर खुमार,
तुझमें जो वो बात थी, वो कहाँ खो गई
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
पहला सा रंग नहीं कलियों में तेरी,
नहीं वो महक कहीं गलियों में तेरी,
रानी तेरी रात की वो कहाँ खो गई,
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
बिजली की बिन्दिया चमकती नहीं काहे,
पवन बसन्ती बहकती नहीं काहे,
सखी तेरे साथ की वो कहाँ खो गई,
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
तुझमें जो वो बात थी, वो कहाँ खो गई
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
पहला सा रंग नहीं कलियों में तेरी,
नहीं वो महक कहीं गलियों में तेरी,
रानी तेरी रात की वो कहाँ खो गई,
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
बिजली की बिन्दिया चमकती नहीं काहे,
पवन बसन्ती बहकती नहीं काहे,
सखी तेरे साथ की वो कहाँ खो गई,
हाय रे, तू आज क्या से क्या हो गई ।
- Lata Mangeshkar.