Sarakti Jaye Hai Rukh Se Naqab Aahista Aahista.
सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता,
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता ।
जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया पर्दा,
हया यक़लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता ।
सवाल-ए-वस्ल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना,
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता ।
हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना,
इधर तो जल्दी-जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता ।
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो,
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता ।
वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’ और मैं कहूँ उनसे,
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता ।
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता ।
जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया पर्दा,
हया यक़लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता ।
सवाल-ए-वस्ल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना,
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता ।
हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना,
इधर तो जल्दी-जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता ।
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो,
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता ।
वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’ और मैं कहूँ उनसे,
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता ।
- Ameer Meenai.
- Jagjit Singh.