Patthar Ke Khuda Patthar Ke Sanam Patthar Ke Insaan.

पत्थर के खुदा पत्थर के सनम, पत्थर के ही इन्सान पाए हैं,
तुम शहर–ए–मोहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।

बुतखाना समझते हो जिसको, पूछो ना वहाँ क्या हालत है,
हम लोग वहीं से लौटें हैं, बस शुक्र करो लौट आए हैं ।

हम सोच रहें हैं मुद्दत से, अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ,
सहरा में खुशी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं ।

होठों पे तब्बसुम हल्का सा, आँखों में नमी सी ऐ ‘फ़ाक़िर’,
हम ऐहल–ए–मोहब्बत पर अक्सर, ऐसे भी ज़माने आए हैं ।
  • Sudarshan Faakir.
  • Jagjit Singh.