Zindagi Se Badi Saza Hi Nahin Aur Kya Jurm Hai Pata Hi Nahi. / ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं ।
ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं ।
इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ।
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे,
झूठ की कोई इन्तिहा ही नहीं ।
जड़ दो चाँदी में चाहे सोने में,
आईना झूठ बोलता ही नहीं ।
और क्या जुर्म है पता ही नहीं ।
इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ।
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे,
झूठ की कोई इन्तिहा ही नहीं ।
जड़ दो चाँदी में चाहे सोने में,
आईना झूठ बोलता ही नहीं ।
- Krishan Bihari Noor.
- Jagjit Singh.