Na Ho Gar Aashian Nahi Hota But Kisi Ka Khuda Nahi Hota.
ना हो गर आशना नहीं होता,
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता ।
तुम भी उस वक़्त याद आते हो,
जब कोई आसरा नहीं होता ।
दिल में कितना सुकून होता है,
जब कोई मुद्दवा नहीं होता ।
हो ना जब तक शिकार-ए-नाकामी,
आदमी काम का नहीं होता ।
ज़िन्दगी थी शबाब तक ‘सीमाब’,
अब कोई सानेहा नहीं होता ।
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता ।
तुम भी उस वक़्त याद आते हो,
जब कोई आसरा नहीं होता ।
दिल में कितना सुकून होता है,
जब कोई मुद्दवा नहीं होता ।
हो ना जब तक शिकार-ए-नाकामी,
आदमी काम का नहीं होता ।
ज़िन्दगी थी शबाब तक ‘सीमाब’,
अब कोई सानेहा नहीं होता ।
- Jagjit Singh.
- Seemab Akbarabadi.