Kya Sach Hai Kya Jhooth Hai Jeevan Ki Kise Pehchan. / क्या सच है क्या झूठ है, जीवन की किसे पहचान,
क्या सच है क्या झूठ है, जीवन की किसे पहचान,
समझा है किसने इसे आज तक, किसके हाथों में है ये कमान ।
जैसे राख़ के अंदर कोई अंगारा रह जाता है जलने के लिए,
मौन समर्पण में भी तो विद्रोह पनपता रहता है मिटने के लिए,
जानी किसने पीर पराई ख़िलने से पहले मुर्झाई, अधरों की मुस्कान ।
जीना बस की बात नहीं है मरने का अधिकार नहीं छलना है बड़ी,
सासों पर पहरा बैठा है जीने में भी सार नहीं टूटी है कड़ी,
झूठे रिश्ते नाते सारे अपने ही सपनो से हारे उलझन में है प्राण ।
जीवन है इक लक्ष्मण रेखा जिसने ना इसको देखा गिरता ही गया,
कस्तूरी मृग की तरह भटका वो जंगल जंगल घिरता ही गया,
पूरी ना होती है चाहें कितनी अंजानी है राहें मंज़िल है अंजान ।
समझा है किसने इसे आज तक, किसके हाथों में है ये कमान ।
जैसे राख़ के अंदर कोई अंगारा रह जाता है जलने के लिए,
मौन समर्पण में भी तो विद्रोह पनपता रहता है मिटने के लिए,
जानी किसने पीर पराई ख़िलने से पहले मुर्झाई, अधरों की मुस्कान ।
जीना बस की बात नहीं है मरने का अधिकार नहीं छलना है बड़ी,
सासों पर पहरा बैठा है जीने में भी सार नहीं टूटी है कड़ी,
झूठे रिश्ते नाते सारे अपने ही सपनो से हारे उलझन में है प्राण ।
जीवन है इक लक्ष्मण रेखा जिसने ना इसको देखा गिरता ही गया,
कस्तूरी मृग की तरह भटका वो जंगल जंगल घिरता ही गया,
पूरी ना होती है चाहें कितनी अंजानी है राहें मंज़िल है अंजान ।
- Jagjit Singh.
- Shiv Shanker Vashishth.