Kya Hind Ka Zindan Kaanp Raha Gunj Rahi Hain Taqbeerein.

क्या हिंद का ज़िन्दाँ काँप रहा गूँज रही हैं तक़बीरें,
उक्ताये हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़न्जीरें ।

दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जमा हुए हैं ज़िन्दानी,
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें ।

क्या उनको ख़बर थी होंठों पर जो मोहर लगाया करते थे,
इक रोज़ इसी ख़ामोशी से टपकेंगी दहकती तक़रीरें ।

सम्भलो के वो ज़िन्दाँ गूँज उठा झपटो के वो क़ैदी छूट गये,
उठो कि वो बैठी दीवारें दौड़ो कि वो टूटी ज़न्जीरें ।
  • Chorus.
  • Josh Malihabadi.