Ab Mere Pass Tum Aayi Ho To Kya Aayi Ho.
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो ।
मैंने माना के तुम इक पैकर-ए-रानाई हो,
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन आराई हो,
तलत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो,
बिन्त-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो,
मुझसे मिलने में अब अबन्देशा-ए-रुसवाई है,
मैंने खुद अपने किये की ये सज़ा पाई है ।
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था,
सर पे सरशरी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था,
माहपारों से मोहब्बत का जुनूँ तारी था,
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था,
बिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी,
एक रंगीन-ओ-हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी ।
क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार,
मेरी फ़रियाद-ए-जिगरदोज़ मेरा नाला-ए-ज़ार,
शिद्दत-ए-कर्ब में ड़ूबी हुई मेरी गुफ़्तार,
मै के ख़ुद अपने मज़ाक़-ए-तरब आगीं का शिकार,
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ,
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ ।
मैंने माना के तुम इक पैकर-ए-रानाई हो,
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन आराई हो,
तलत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो,
बिन्त-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो,
मुझसे मिलने में अब अबन्देशा-ए-रुसवाई है,
मैंने खुद अपने किये की ये सज़ा पाई है ।
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था,
सर पे सरशरी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था,
माहपारों से मोहब्बत का जुनूँ तारी था,
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था,
बिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी,
एक रंगीन-ओ-हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी ।
क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार,
मेरी फ़रियाद-ए-जिगरदोज़ मेरा नाला-ए-ज़ार,
शिद्दत-ए-कर्ब में ड़ूबी हुई मेरी गुफ़्तार,
मै के ख़ुद अपने मज़ाक़-ए-तरब आगीं का शिकार,
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ,
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ ।
- Jagjit Singh.
- Majaz Lucknawi.