Tere Khayaal Kii Aab-O-Hawaa Mein Jeete Hain.

खुमार-ए-ग़म है महकती फिज़ा में जीते हैं,
तेरे ख़याल की आब-ओ-हवा में जीते हैं ।

बड़े तपाक से मिलते हैं मिलने वाले मुझे,
वो मेरे दोस्त हैं तेरी वफ़ा में जीते हैं ।

फ़िराक-ए-यार में साँसों को रोके रखते हैं,
हर एक लम्हा गुज़रती क़ज़ा में जीते हैं ।

ना बात पूरी हुई थी की रात टूट गयी,
अधूरे ख़्वाब की आधी सज़ा में जीते हैं ।

तुम्हारी बातों में कोई मसीहा बसता है,
हसीन लबों से बरसती शफ़हा में जीते हैं ।
  • Jagjit Singh.