Kahin Door Jab Din Dhal Jaaye Saanjh Ki Dulhan Gagan.

कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए,
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए,
मेरे ख़यालों के आँगन में,
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए ।

कभी यूँ ही जब हुई बोझल सांसें,
भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही आँखें,
कभी मचलती प्यार से चलती,
छुए कोई मुझे पर नज़र न आए ।

कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते,
कहीं से निकल आए जन्मों के नाते,
है मिठी उलझन बैरी अपना मन,
अपना ही हो के सहे दर्द पराए, दर्द पराए ।

दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे,
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे,
ये मेरे सपने यही तो हैं अपने,
मुझसे जुदा ना होंगे इनके ये साए, इनके ये साए ।
  • Jagjit Singh.