Main Kaise Kahoon Jaaneman Tera Dil Sune Merii.
‘‘ शफ़क हो फूल हो शबनम हो माहताब हो तुम,
नहीं जवाब तुम्हारा के लाजवाब हो तुम । ’’
मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात,
ये आँखों की सियाही, ये होंठों का उजाला,
ये ही मेरे दिन–रात, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
काश तुझको पता हो, तेरे रूख–ए–रौशन से,
तारे खिले हैं, दीये जले हैं, दिल में मेरे कैसे कैसे,
महकने लगी हैं वही से मेरी रातें,
जहाँ से हुआ तेरा साथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
पास तेरे आया था मैं तो काँटों पे चलके,
लेकिन यहाँ तो कदमों के नीचे फर्श बिछ गये गुल के,
के अब ज़िन्दगानी, हैं फसलें बहाराँ,
जो हाथों में रहे तेरा हाथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
नहीं जवाब तुम्हारा के लाजवाब हो तुम । ’’
मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात,
ये आँखों की सियाही, ये होंठों का उजाला,
ये ही मेरे दिन–रात, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
काश तुझको पता हो, तेरे रूख–ए–रौशन से,
तारे खिले हैं, दीये जले हैं, दिल में मेरे कैसे कैसे,
महकने लगी हैं वही से मेरी रातें,
जहाँ से हुआ तेरा साथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
पास तेरे आया था मैं तो काँटों पे चलके,
लेकिन यहाँ तो कदमों के नीचे फर्श बिछ गये गुल के,
के अब ज़िन्दगानी, हैं फसलें बहाराँ,
जो हाथों में रहे तेरा हाथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन ।
- Jagjit Singh.