Kal Chaudhwee Ki Raat Thi Shabbhar Raha Charcha Tera.

अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो ।

कल चौधवी की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा ।

हम भी वही मौजूद थे, हमसे भी सब पूछा कि ये,
हम हँस दिये हम चुप रहे, मंजूर था पर्दा तेरा ।

इस शहर में किससे मिलें, हमसे तो छुटी महफिलें,
हर शख़्स तेरा नाम ले, हर शख़्स दीवाना तेरा ।

कूचे को तेरे छोड़ कर, जोगी ही बन जाये मगर,
जंगल तेरे पर्बत तेरे, बस्ती तेरी सहरा तेरा ।

बेदर्दी सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल,
आशिक़ तेरा रूसवा तेरा, शायर तेरा ‘इंशा’ तेरा ।
  • Ibn-E-Insha.
  • Jagjit Singh.