Har Taraf Har Jagah Beshumar Aadmi. / हर तरफ़ हर जग़ह बेशुमार आदमी,
हर तरफ़ हर जग़ह बेशुमार आदमी,
फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी ।
सुबहों से शाम तक बोझ ढोता हुआ,
अपनी ही लाश पर खुद मज़ार आदमी ।
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी ।
रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ,
हर नये दिन नया इंतज़ार आदमी ।
ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र,
आख़िरी सांस तक बेक़रार आदमी ।
फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी ।
सुबहों से शाम तक बोझ ढोता हुआ,
अपनी ही लाश पर खुद मज़ार आदमी ।
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी ।
रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ,
हर नये दिन नया इंतज़ार आदमी ।
ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र,
आख़िरी सांस तक बेक़रार आदमी ।
- Nida Fazli.
- Jagjit Singh - Lata Mangeshkar.