Kabhi Yun Bhi Aa Meri Aankh Mein Ki Meri Nazar Ko Khabar Na Ho. / कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर ना हो,
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर ना हो,
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर ना हो ।
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये शिफ़त भी अता करे,
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो दुआ में मेरी असर ना हो ।
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के,
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र ना हो ।
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ,
तुझे धड़कनो में बसा लू मैं, के बिछड़ने का कभी ड़र ना हो ।
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर ना हो ।
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये शिफ़त भी अता करे,
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो दुआ में मेरी असर ना हो ।
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के,
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र ना हो ।
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ,
तुझे धड़कनो में बसा लू मैं, के बिछड़ने का कभी ड़र ना हो ।
- Bashir Badr.
- Jagjit Singh.