Aankh Se Door Na Ho Dil Se Utar Jaayega. / आँख से दूर ना हो दिल से उतर जायेगा,

आँख से दूर ना हो दिल से उतर जायेगा,
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा ।

इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी,
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा  ।

तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे,
और वो बाम-ए-रफ़ाकत से उतर जायेगा ।

ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला,
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा ।
  • Ahmed Faraz.
  • Lata Mangeshkar.

    Dard Se Mera Daman Bhar De Ya Allah./ दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह,

    दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह,
    फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह ।

    मैंने तुझसे चाँद सितारे कब मांगे,
    रोशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह ।

    सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके,
    सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह ।

    या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे,
    या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह ।

    • Qateel Shifai.
    • Lata Mangeshkar.

    Jo Bhi Bura Bhala Hai Allaah Jaanata Hai. / जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है,

    जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है,
    बंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता है ।

    ये फ़र्श-ओ-अर्श क्या है अल्लाह जानता है,
    पर्दो में क्या छिपा है अल्लाह जानता है ।

    जाकर जहाँ से कोई वापस नहीं है आता,
    वो कौन सी जगह है अल्लाह जानता है ।

    नेक़ी बदी को अपने कितना ही तू छिपाये,
    अल्लाह को पता है अल्लाह जानता है ।

    ये धूप छाँव देखो ये सुबह शाम देखो,
    सब क्यूँ ये हो रहा है अल्लाह जानता है ।

    क़िस्मत के नाम को तो सब जानते है लेकिन,
    क़िस्मत में क्या लिखा है अल्लाह जानता है ।
    • Akhtar Shirani.
    • Jagjit Singh - Lata Mangeshkar.

    Dhoop Mein Niklo Ghataon Mein Nahakar To Dekho. / धूप में निकलो घटाओं में नहाकर तो देखो,

    धूप में निकलो घटाओं में नहाकर तो देखो,
    ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर तो देखो ।

    वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में,
    क्या जरूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो ।

    पत्थरों में ज़ुबान होती है दिल होते है,
    अपनी घर की दर-ओ-दीवार सजाकर देखो ।

    फ़ासिला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है,
    वो मिले या ना मिले हाथ बढाकर देखो ।
    • Nida Fazli.
    • Jagjit Singh.

    Dhuan Banake Fiza Mein Udaa Diya Mujhko. / धुँआ बना के फिज़ा में उड़ा दिया मुझको,

    धुँआ बना के फिज़ा में उड़ा दिया मुझको,
    मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको ।

    खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिये,
    सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको ।

    सफेद संग कि चादर लपेट कर मुझ पर,
    फसीने शहर पर किस ने सजा दिया मुझको ।

    मैं एक ज़र्रा बुलन्दी को छुने निकला था,
    हवा ने थाम कर ज़मीन पर गिरा दिया मुझको ।
    • Nazeer Baqri.
    • Lata Mangeshkar.