Koi Samjhega Kya Raaz-E-Gulshan Jab Tak Uljhe Na Kaanton Se Daaman. / कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन, जब तक उलझे ना काटों से दामन ।
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन,
जब तक उलझे ना काटों से दामन ।
यक-ब-यक सामने आना जाना,
रूक ना जाये कहीं दिल की धड़कन ।
गुल तो गुल्ख़ार तक चुन लिये हैं,
फिर भी खाली है खुर्ची का दामन ।
कितनी आराईशें आशियाना,
टूट जाये ना शाख़-ए-नशेमन ।
हस्मतें आशियाना बना दी,
बर्फ़ को दोस्त समझू के दुश्मन ।
जब तक उलझे ना काटों से दामन ।
यक-ब-यक सामने आना जाना,
रूक ना जाये कहीं दिल की धड़कन ।
गुल तो गुल्ख़ार तक चुन लिये हैं,
फिर भी खाली है खुर्ची का दामन ।
कितनी आराईशें आशियाना,
टूट जाये ना शाख़-ए-नशेमन ।
हस्मतें आशियाना बना दी,
बर्फ़ को दोस्त समझू के दुश्मन ।
- Fana Nizami Kanpuri.
- Chitra - Jagjit Singh.