Ab Ke Barsat Ki Rut Aur Bhi Bhadkili Hai. / अब के बरसात की रूत और भी भड़कीली है,

अब के बरसात की रूत और भी भड़कीली है,
जिस्म से आग निकलती है कब़ा भी गिली है ।

सोचता हूँ कि अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा,
लोग भी काँच के है राह भी पत्थरीली है ।

पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने,
अब ये कहता है कि रंगत ही मेरी पीली है ।

मुझको बेरंग ही कर दे ना कहीं रंग इतने,
सब्ज़ मौसम है हवा सुर्ख़ फ़िज़ा गिली है ।
  • Muzaffar Warsi.
  • Chitra Singh.