Ek Na Ek Shama Andhere Mein Jaalaye Rakhiye. / इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
सुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये ।
जिन के हाथों से हमें ज़ख़्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं,
वो भी कहते हैं के ज़ख़्मों को छुपाये रखिये ।
कौन जाने के वो किस राह-गुज़र से गुज़रे,
हर गुज़र-गाह को फूलों से सजाये रखिये ।
दामन-ए-यार की ज़ीनत ना बने हर आँसू,
अपनी पलकों के लिये कुछ तो बचाये रखिये ।
सुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये ।
जिन के हाथों से हमें ज़ख़्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं,
वो भी कहते हैं के ज़ख़्मों को छुपाये रखिये ।
कौन जाने के वो किस राह-गुज़र से गुज़रे,
हर गुज़र-गाह को फूलों से सजाये रखिये ।
दामन-ए-यार की ज़ीनत ना बने हर आँसू,
अपनी पलकों के लिये कुछ तो बचाये रखिये ।
- Taariq Badayani.
- Chitra Singh.