Ya Mujhe Afsar-E-Shah Na Banaya Hota. / या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता,
या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता,
या मेरा ताज गदाया न बनाया होता ।
ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे,
काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता ।
नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को,
उम्र का तन्ग न पैमाना बनाया होता ।
रोज़-ए-मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र',
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता ।
- Bahadur Shah 'Zafar'.
- Bhupinder.
- Complete Ghazal.......
या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता,
या मेरा ताज गदाया न बनाया होता ।
नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को,
उम्र का तन्ग न पैमाना बनाया होता ।
शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस ने,
वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता ।
या मेरा ताज गदाया न बनाया होता ।
ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे,
काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता ।
काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता ।
नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को,
उम्र का तन्ग न पैमाना बनाया होता ।
अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने,
क्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होता ।
क्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होता ।
शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस ने,
वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता ।
रोज़-ए-मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र',
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता ।
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता ।