Lai Hayat Aaye Qazaa Le Chali Chale. / लाई हयात आये क़ज़ा ले चली चले,

लाई हयात आये क़ज़ा ले चली चले,
अपनी ख़ुशी न आये न अपनी खुशी चले ।

बेहतर तो है यही के न दुनिया से दिल लगे,
पर क्या करें जो काम न बेदिल्लगी चले ।

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ,
तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले ।

जा कि हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़',
अपनी बला से बाद-ए-सबा कहीं चले ।
  • Ibrahim 'Zauq'.
  • Bhupinder.

  • Complete Ghazal......
लाई हयात आये क़ज़ा ले चली चले,
अपनी ख़ुशी न आये न अपनी खुशी चले ।

बेहतर तो है यही के न दुनिया से दिल लगे,
पर क्या करें जो काम न बेदिल्लगी चले ।

हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो कहेंगे बवक़्त-ए-मर्ग,
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले ।

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ,
तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले ।

नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है वो ही हो,
दानिश तेरी न कुछ मेरी दानिश्वरी चले ।

कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदक़िमार,
जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले ।

जा कि हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़',
अपनी बला से बाद-ए-सबा कहीं चले ।