Dialogue & Koi Din Gar Zindagani Aur Hai. / कोई दिन गर ज़िंदगानी और है,

ज़िन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुजरी ग़ालिब,
हम भी क्या याद रखेंगे कि ख़ुदा रखते थे ।

  • Naseeruddin Shah.
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है,
अपने जी में हमने ठानी और है ।

बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें,
पर कुछ अब के सरगिरानी और है ।

देके ख़त मूँह देखता है नामाबर,
कुछ तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है ।

हो चुकीं 'ग़ालिब' बलायें सब तमाम,
एक मर्ग-ए-नागहानी और है ।

  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Vinod Sehgal.

  • Complete Ghazal.......
कोई दिन गर ज़िंदगनी और है,
अपने जी में हमने ठानी और है ।


आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ,
सोज़-ए-ग़म है निहानी और है ।

बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें,
पर कुछ अब के सरगिरानी और है ।


देके ख़त मूँह देखता है नामाबर,
कुछ तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है ।

क़ाता-ए-अमार है अक्सर नुजूम,
वो बला-ए-आसमानी और है ।


हो चुकीं 'ग़ालिब' बलायें सब तमाम,
एक मर्ग-ए-नागहानी और है ।