Phir Kuch Is Dil Ko Beqarari Hai Seena Zoya-E-Zakm-E-Kaari Hai. / फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है, सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है ।

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'ग़ालिब',
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख़्वार होता ।


फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है ।

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है ।

बेख़ुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब',
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है ।
  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Jagjit Singh.

  • Complete Ghazal.......
फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है ।

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन,
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है ।

क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़,
फिर वही पर्दा-ए-अम्मारी है ।

चश्म-ए-दल्लल-ए-जिन्स-ए-रुसवाई,
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है ।

वही सदरन्ग नाला फ़र्साई,
वही सदगूना अश्क़बारी है ।

दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर,
महश्रिस्ताँ-ए-बेक़रारी है ।

जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है,
रोज़-ए-बाज़ार-ए-जाँसुपारी है ।

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है ।

फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़,
गर्म बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है ।

हो रहा है जहाँ में अँधेर,
ज़ुल्फ़ की फिर सरिश्तादारी है ।

फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल,
एक फ़रियाद-ओ-आह-ओ-ज़ारी है ।

फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब,
अश्क़बारी का हुक्मज़ारी है ।

दिल-ओ-मिज़्श्गाँ का जो मुक़दमा था,
आज फिर उस की रूबक़ारी है ।

बेख़ुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब',
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है ।