Dialogue & Aah Ko Chahiye Ik Umr Asar Hone Tak. / आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक,

था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ,
उड़ने से पेशतर भी मिरा रंग ज़र्द था ।

  • Naseeruddin Shah.
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक ।

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक ।

हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक ।

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज,
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक ।
  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Jagjit Singh.

  • Complete Ghazal.......
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक ।

दाम हर मौज में है हल्क़-ए-सदकामे-निहंग,
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक ।

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक ।

हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक ।

पर्तव-ए-ख़ूर से है शबनम को फ़ना की तालीम,
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक ।

यकनज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल,
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक ।

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज,
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक ।

  • Complete Ghazal.......
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था,
इश्क़-ए-नबर्द पेशह तलबगार-ए-मर्द था ।

था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ,
उड़ने से पेशतर भी मिरा रंग ज़र्द था ।

तालीफ़-ए नुसख़हहा-ए-वफ़ा कर रहा था मैं,
मज्मू`अह-ए-ख़याल अभी फ़र्द-फ़र्द था ।

दिल ता जिगर कि साहिल-ए-दरया-ए-ख़ूं है अब,
उस रहगुज़र में जलवह-ए-गुल आगे गर्द था ।

जाती है कोई कश्मकश अन्दोह-ए-इश्क़ की,
दिल भी अगर गया तो वही दिल का दर्द था ।

अह्बाब चारह-साज़ी-ए-वहशत न कर सके,
ज़िन्दां में भी ख़याल बियाबां-नवर्द था ।

यह लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्तह-जां की है,
हक़ मग़्फ़रत करे `अजब आज़ाद मर्द था ।