Ye Faasile Teri Galiyon Ke Humse Tay Na Hue. / ये फ़ासले तेरी गलियों के, हमसे तय न हुए,
ये फ़ासले तेरी गलियों के, हमसे तय न हुए,
हज़ार बार रूके हम, हज़ार बार चले ।
ना जाने कौन सी मिट्टी, वतन की मिट्टी थी,
नज़र में धूल, जिगर में लिए गुबार चले ।
ये कैसी सरहदें, उलझी हुई हैं पैरों में,
हम अपने घर की तरफ़, उठ के बार बार चले ।
ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंज़िलें ठहरी,
ये उम्र उड़ती हुई, गर्द में गुज़ार चले ।
हज़ार बार रूके हम, हज़ार बार चले ।
ना जाने कौन सी मिट्टी, वतन की मिट्टी थी,
नज़र में धूल, जिगर में लिए गुबार चले ।
ये कैसी सरहदें, उलझी हुई हैं पैरों में,
हम अपने घर की तरफ़, उठ के बार बार चले ।
ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंज़िलें ठहरी,
ये उम्र उड़ती हुई, गर्द में गुज़ार चले ।
- Jagjit Singh.
- Gulzar.