Samajte The Magar Phir Bhi Na Rakhi Dooriyaan Humne. / समझते थे मगर फिर भी ना रखी दूरीयाँ हमने,
समझते थे मगर फिर भी ना रखी दूरीयाँ हमने,
चराग़ों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने ।
कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती,
सजाए उम्र भर कागज़ के फूल और पत्तियाँ हमने ।
यूँ ही घुट-घुट के मर जाना हमे मंज़ूर था लेकिन,
किसी कमज़र्फ़ पर ज़ाहिर ना की मजबूरीयाँ हमने ।
हम उस महफ़िल में बस एक बार सच बोले थे ऐ वली,
ज़बाँ पर उम्र भर महसूस की चिन्गारीयाँ हमने ।
चराग़ों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने ।
कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती,
सजाए उम्र भर कागज़ के फूल और पत्तियाँ हमने ।
यूँ ही घुट-घुट के मर जाना हमे मंज़ूर था लेकिन,
किसी कमज़र्फ़ पर ज़ाहिर ना की मजबूरीयाँ हमने ।
हम उस महफ़िल में बस एक बार सच बोले थे ऐ वली,
ज़बाँ पर उम्र भर महसूस की चिन्गारीयाँ हमने ।
- Jagjit Singh.