Khumari Chaddh Ke Utar Gayi Zindagi Yun Hi Guzar Gayi. / ख़ुमारी चढ़ के उतर गई, ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र गई,
ख़ुमारी चढ़ के उतर गई, ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र गई,
कभी सोते सोते कभी जागते, ख़्वाबों के पिछे यूँ ही भागते,
अपनी तो सारी उमर गई, अपनी तो सारी उमर गई ।
रंगीन बहारों की ख़्वाहीश रही, हाथ मगर कुछ आया नहीं,
कहने को अपने थे साथी कई, साथ किसी ने निभाया नहीं,
कोई भी हमसफ़र नहीं, खो गई हर ड़गर कहीं ।
लोगों को अक्सर देखा है, घर के लिए रोते हुए,
हम तो मगर बेघर ही रहे, घरवालों के होते हुए,
आया अपना नज़र नहीं, अपनी जहाँ तक नज़र गई ।
पहले तो हम सुन लेते थे, शोर में भी शहनाईयाँ,
अब तो हमको लगती है, भीड़ में भी तन्हाईयाँ,
जीने की हसरत किधर गई, दिल की कली बिख़र गई ।
कभी सोते सोते कभी जागते, ख़्वाबों के पिछे यूँ ही भागते,
अपनी तो सारी उमर गई, अपनी तो सारी उमर गई ।
रंगीन बहारों की ख़्वाहीश रही, हाथ मगर कुछ आया नहीं,
कहने को अपने थे साथी कई, साथ किसी ने निभाया नहीं,
कोई भी हमसफ़र नहीं, खो गई हर ड़गर कहीं ।
लोगों को अक्सर देखा है, घर के लिए रोते हुए,
हम तो मगर बेघर ही रहे, घरवालों के होते हुए,
आया अपना नज़र नहीं, अपनी जहाँ तक नज़र गई ।
पहले तो हम सुन लेते थे, शोर में भी शहनाईयाँ,
अब तो हमको लगती है, भीड़ में भी तन्हाईयाँ,
जीने की हसरत किधर गई, दिल की कली बिख़र गई ।
- Jagjit Singh.
- Shaily Shailender.