Dhuan Utha Hai Kahin Aag Jal Rahi Hogi Asser Roshni. / धुंआ उठा है कहीं आग जल रही होगी,

धुंआ उठा है कहीं आग जल रही होगी,
असीर रौशनी बाहर निकल रही होगी ।

ये चारों ओर से आते हुए कई रस्ते,
जब एक दूसरे के जिस्म आ के छुते हैं,
कोई तो हाथ मिलाकर निकल गया होगा,
किसी की मोड़ पर मंज़िल बदल गई होगी ।

हर एक रोज़ नया आस्मान खुलता है,
ख़बर नहीं है के कल दिन का रंग क्या होगा,
पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी ।
  • Jagjit Singh.