Karam Sakal Tav Vilas Lok Aham Keval Haas. / कर्म सकल तव विलास, लोक अहम केवल हास ।

कर्म सकल तव विलास, लोक अहम केवल हास ।
हस्ती किच बिच ड़ारो, पंगु पार गिरी साहास ।
प्रभु पद में कोई बैठावो, पतित का तो हक उलास ।
यंत्र बद्ध किनी मोहे, चलत करो नव प्रगास ।
तू धर्मी देह माही, फैलावो चो दिस उजास ।
रथ समान मोही बनाए, चलावो हाथ तुमरे रास ।
करो कर्म अपनी और, ढूँढो सकल जग की आस ।
  • Jagjit Singh.