Jabse Kareeb Ho Ke Chale Zindagi Se Hum. / जब से क़रीब हो के चले, ज़िन्दगी से हम,

जब से क़रीब हो के चले, ज़िन्दगी से हम,
ख़ुद अपने आईने को लगे, अजनबी से हम ।

आँखों को दे के रोशनी गुल कर दिये चराग़,
तंग आ चुके हैं वक़्त कि इस दिल्लगी से हम ।

अच्छे बुरे के फ़र्क ने बस्ती उजाड़ दी,
मजबूर हो के मिलने लगे हर किसी से हम ।

वो कौन है जो पास भी है और दूर भी,
हर लम्हा माँगते हैं किसी को किसी से हम ।

एहसास ये भी कम नहीं जीने के वास्ते,
हर दर्द जी रहे हैं तुम्हारी खुशी से हम ।

कुछ दूर चलके रास्ते सब एक से लगे,
मिल लेगा किसी से मिलाऐं किसी से हम ।

किस मोड़ पर हयात ने पहुँचा दिया हमें,
नाराज़ है ग़मों से ना खुश है खुशी से हम ।
  • Jagjit Singh.