Ek Jaam Mein Giren Hain Kuch Log Ladkhadake. / एक जाम में गिरे हैं कुछ लोग लड़खड़ाके,

एक जाम में गिरे हैं कुछ लोग लड़खड़ाके,
पीने गए थे चल के लाये गए उठाके ।

सहबाँ की आबरू पर पानी ना फेर साक़ी,
मैं ख़ुद ही पी रहा हूँ आसूँ मिला मिला के ।

वो मेरे लगज़िशों पर तन्कीद कर रहे हैं,
जो मैक़दे में ख़ुद भी चलते हैं लड़खड़ाके ।

इक दिन तु आ के मेरी मन्नत की लाज रख ले,
कब से उजाड़ता हूँ महफ़िल सजा सजा के ।

ईमान ‘नज़ीर’ अपना दे आए हैं बुतों को,
दिल के बड़े घनी है बैठे हैं धन लुटा के ।
  • Jagjit Singh.
  • Nazeer.