Taskeen-E-Dil-E-Mehzoom Na Hui Wo Saii-E-Karam Farmaa Bhi Gaye.
तस्कीन-ए-दिल-ए-मह्ज़ूम न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गये,
इस सई-ए-करम को क्या कहिये बहला भी गये तड़पा भी गये ।
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यहाँ हम ने ज़बाँ ही खोले थी वहाँ आँख झुकी शरमा भी गये ।
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अन्जुमन-ए-इरफ़ानी में,
सब जाम-ब-कफ़ बैठे रहे हम पी भी गये छलका भी गये ।
इस सई-ए-करम को क्या कहिये बहला भी गये तड़पा भी गये ।
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यहाँ हम ने ज़बाँ ही खोले थी वहाँ आँख झुकी शरमा भी गये ।
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अन्जुमन-ए-इरफ़ानी में,
सब जाम-ब-कफ़ बैठे रहे हम पी भी गये छलका भी गये ।
- Jagjit Singh.
- Majaz Lucknawi.