Ab To Uth Sakta Nahin Aankhon Se Baar-E-Intezaar.
अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इन्तज़ार,
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इन्तज़ार ।
उनकी उल्फ़त का यक़ीं हो उनके आने की उम्मीद,
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इन्तज़ार ।
मेरी आहें नारसा मेरी दुआऐं नाक़ुबूल,
या इलाही क्या करूँ मैं शर्मसार-ए-इन्तज़ार ।
उनके ख़त की आरज़ू है उनकी आमद का ख़याल,
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इन्तज़ार ।
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इन्तज़ार ।
उनकी उल्फ़त का यक़ीं हो उनके आने की उम्मीद,
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इन्तज़ार ।
मेरी आहें नारसा मेरी दुआऐं नाक़ुबूल,
या इलाही क्या करूँ मैं शर्मसार-ए-इन्तज़ार ।
उनके ख़त की आरज़ू है उनकी आमद का ख़याल,
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इन्तज़ार ।
- Chitra Singh.
- Hasrat Mohani.