Phoolon Ki Tarah Lab Khol Kabhi Khushboo Ki Zubaan Mein Bol Kabhi.
फूलों की तरह लब खोल कभी,
खुश्बू की ज़ुबाँ में बोल कभी ।
अल्फ़ाज़ परखता रहता है,
आवाज़ हमारी तोल कभी ।
खिड़की में कटी है सब रातें,
कुछ चौरस और कुछ गोल कभी ।
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह,
हो जाता है ड़ावाँ ड़ोल कभी ।
अनमोल नहीं लेकिन फिर भी,
पूछो तो मुफ़्त का मोल कभी ।
खुश्बू की ज़ुबाँ में बोल कभी ।
अल्फ़ाज़ परखता रहता है,
आवाज़ हमारी तोल कभी ।
खिड़की में कटी है सब रातें,
कुछ चौरस और कुछ गोल कभी ।
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह,
हो जाता है ड़ावाँ ड़ोल कभी ।
अनमोल नहीं लेकिन फिर भी,
पूछो तो मुफ़्त का मोल कभी ।
- Gulzar.
- Jagjit Singh.